निर्मल वर्मा और सुख

निर्मल सुख 🌸

'सुख' यह एक शब्द मनुष्य के सभी कर्मों का प्रयोजन है, हम इस शब्द के अर्थ को पा लेने, जी लेने की लड़ाई लड़ते हैं.

'सुख' शब्द निर्मल वर्मा के उपन्यास, उनकी कहानियों, उनके निबंधों में कई बार आता है. निर्मल के अंतर्मुखी, एकाकी पात्र सुख को अपने अलहदा तरीके से या यूँ कहें कि निर्मल दृष्टि से परिभाषित करते हैं. 'जिन्दगी यहाँ और वहाँ' कहानी में एक पात्र पूछता है 'सुख? क्या कोई ऐसी चीज है जिस पर उंगली रख कर कहा जा सके, यह सुख है. यह तृप्ति है. नहीं सुख होता नहीं सिर्फ याद किया जा सकता है अपनी यातना में'. निर्मल वर्मा के उपन्यास वे दिन में भी सुख को खूबसूरत ढंग से परिभाषित किया गया है' दो तरह के सुख होते हैं -- एक बड़ा सुख, एक छोटा सुख। बड़ा सुख हमेशा साथ रहता है, छोटा सुख कभी-कभी मिल पाता है... सिगरेट पीना, ठण्ड में आग सेंकना, ये उसके लिए छोटे सुख थे... और बड़ा सुख--सांस ले पाना, महज हवा में सांस ले सकना -- इससे बड़ा सुख कोई और नहीं है'. वे दिन उपन्यास में निर्मल सुख की सीमाएं भी बताते हैं -' एक खास हद के बाद सब लोग एक जैसै सुखी हो जाते हैं. तब तुम टिक जाते हो. किसी चीज पर टिक जाना.. वह अपने में सुख न भी हो, तुम उससे सुख ले सकते हो : अगर तुम ज्यादा लालची नहीं हो '.

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