लेफ्ट, राइट, सेंटर, समाजवाद??

पुरानी पीढ़ी के पास झूठे ही सही पर सपने थे, हमारी पीढ़ी के पास सामूहिक स्वप्न के नाम पर क्या है? हम उस दौर में जवान हुए जब हमारी राजनीति, साहित्य, दर्शन, विचारधाराएं सब कहीं न कहीं चुक गए हैं. कभी रेणु का कांग्रेस और नेहरू से मोहभंग हुआ था फिर भी उनके भीतर समाजवादी समाज का स्वप्न पलता रहा. हमारी पीढ़ी के जवान होने से पहले ही भारत ने समाजवाद से लेकर हर वाद का पतन और उनकी सीमाओं का लाइव डेमो देख लिया. कभी भूमंडलीकरण के रथ पर सवार भारत आज इसी बहस में फँस कर रह गया है कि आदमी के लिए मशीनें विकसित की गईं या इस तंत्र में आदमी स्वयं मशीन बनने के लिए बाध्य है.

समय-समय पर हमने जिन विचारों का हाथ थामा आज उनके शव लिए फिर रहे हैं.

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